Year of Election 2024: विश्व के इतिहास में साल 2024 सबसे बड़ा चुनावी साल साबित होगा। इस साल दुनिया के 70 से भी अधिक देशों में चुनाव होने वाले हैं और करीब 400 करोड़ लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। लगभग हर महाद्वीप में इस साल चुनाव होने वाले हैं। कुछ देशों में चुनाव हो भी चुके हैं। अमेरिका, भारत, ब्रिटेन और रूस जैसी आर्थिक महाशक्तियों वाले देशों में चुनाव का असल पूरी दुनिया में देखने को मिलेगा।
जियोपॉलिटिक्स के दृष्टिकोण से देखे तो इस साल होने वाले सभी चुनाव बहुत अहम साबित होंगे। भारत में होने वाले लोकसभा चुनाव में तो कई बड़े रिकॉर्ड्स टूटते हुए नजर आएंगे। साल 2024 को इतिहास के पन्नों में हमेशा याद रखा जाएगा।
Year of Election 2024
रूस-युक्रेन में जंग के बीच चुनाव
पिछले 2 से 3 सालों में दुनियाभर में उठा-पटक का दौर जारी है। कई बड़े देशों में युद्ध की स्थिति बनी हुई है तो कई जगह वॉर जारी है। 2022 में शुरू हुई रूस और युक्रेन के बीच जंग का अभी तक कोई नतीजा निकलकर सामने नहीं आया है। आश्चर्य की बात ये है कि इस साल इन दोनों ही देशों में राष्ट्रपति के चुनाव होंगे।
व्लादिमीर पुतिन का छठीं बार राष्ट्रपति बनना लगभग तय है, क्योंकि रूस में राष्ट्रपति चुनाव एक औपचारिकता मात्र है। दूसरी ओर व्लोदोमीर जेलेंस्की को युद्ध के चलते लोगों का साथ और सहानुभूति प्राप्त है। ऐसे में अगर युक्रेन में इलेक्शन होते हैं तो यकीनन जेलेंस्की को इसका फायदा जरूर मिलेगा।
जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप होंगे आमने-सामने
इजराइल औऱ हमस के बीच भी युद्ध का दौर जारी है तो दूसरी ओर चीन और ताइवान के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। अमेरिका खुलेआम ताइवान की आजादी को सपोर्ट कर रहा है तो वहीं चीन हमेशा से ही ताइवान पर अपना हक जताता आया है। ना सिर्फ चीन के साथ बल्कि अमेरिका का और भी कई देशों के साथ तनाव जारी है, जिनमें रूस भी शामिल है। इन सभी कॉन्फ्लिक्ट्स के बीच अमेरिका में इस साल नवंबर में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होंगे।
जो बाइडेन अपनी कुर्सी बचाने के इरादे से मैदान में उतरेंगे तो उनके सामने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। अमेरिका में होने वाले चुनाव का असर वैश्विक स्तर पर देखने को मिलेगा, क्योंकि इससे रूस और युक्रेन के बीच युद्ध थम सकता है। बाइडेन जहां युक्रेन को सपोर्ट कर रहे हैं तो दूसरी ओर डोनाल्ड ट्रंप के रूस के साथ अच्छे संबंध माने जाते हैं। ऐसे में अमेरिकी चुनाव कई युद्ध की दशा और दिशा तय कर सकते हैं।
Read Also:-
बचपन इतना गरीबी में गुजरा कि बॉल खरीदने तक के पैसे नहीं हुआ करते थे, Shamar Joseph Biography
अफ्रीका, एशिया और यूरोप में भी चुनावी माहौल
कोविड-19 के कारण दुनिया के कई बड़े देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिली। कई देशों की जीडीपी ग्रोथ नेगेटिव रही तो कई देशों में भारी इन्फ्लेशन देखने को मिला। कई देशों में इन्फ्लेशन अब भी लगातार बढ़ता जा रहा है तो कुछ देशों में स्थिति सामान्य होती नजर आ रही है। इन सबके बीच यूरोप, अफ्रीका और एशिया के तमाम देशों में चुनावी माहौल देखने को मिल रहा है। यूरोप में पुर्तगाल, बेलारूस, फिनलैंड और स्लोवाकिया जैसे देशों में चुनाव होने हैं।
अफ्रीका में साउथ अप्रीका, चाड, घाना, अल्जीरिया, बोट्सवाना, मॉरिशस, मोज़ांबिक, मॉरिटानिया, रवांडा, सोमालीलैंड और ट्यूनिशिया जैसे देशों में चुनाव होने हैं। एशियाई देशों की बात करें तो पाकिस्तान, बांग्लादेश, ताइवान और इंडोनेशिया जैसे देशों में चुनाव हो चुके है तो वहीं भूटान, मालदीव और भारत में चुनाव होने अभी बाकी हैं। इंडोनेशिया में विश्व का सबसे बड़ा सिंगल डे इलेक्शन देखने को मिला, जहां एक ही दिन में 20 करोड़ से अधिक लोगों ने मतदान किया।
भारत में होंगे सबसे बड़े लोकतंत्र चुनाव
इन सभी में सबसे खास भारत के लोकसभा चुनाव होंगे। अप्रैल-मई में ये चुनाव होंगे, जिसमें कई बड़े रिकॉर्ड्स टूट सकते हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व में करीब 97 करोड़ वोटर्स अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने वाले हैं और ऐसा करने वाला भारत विश्वा का पहला देश बन जाएगा। 12 लाख पोलिंग बूथ देशभर में सेटअप किए जाएंगे। इन चुनावों में मीडिया हाउस और एडवर्टाइजिंग कंपनियों की भी चांदी होने वाली है, क्योंकि सभी पार्टियां पानी की तरह पैसा बहाएगी।
भारत में होने वाले चुनाव विश्व के सबसे महंगे चुनाव साबित होंगे। 2024 आम चुनाव में खर्च होने वाली अनुमानित रकम 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपए बताई जा रही है, जो 2019 में खर्च हुई रकम से दोगुनी है। आखिरी बार अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में 1 लाख 12 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। यानि चुनाव खर्च के मामले में भारत अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। भारत में एक और नरेंद्र मोदी हैट्रिक करना चाहेंगे तो दूसरी ओर INDIA का गठबंधन उन्हें पूरी टक्कर देने की कोशिश करेगा। ये तो वक्त ही बता पाएगा कि मोदी सरकार की योजनाओं के आगे विपक्षी पार्टियां कहां तक टिक पाएगी।