Getting Married at Gunpoint in Bihar: भारत एक ऐसा राज्य, जहां शादी के लिए लड़कों की लगाई जाती है बोली, विवाह से पहले लड़कियां लेती हैं लड़के का इंटरव्यू, कहीं बंदूक की नोक पर तो कहीं किडनैप पर जबरन लड़कों को बना दिया जाता है दूल्हा, परफेक्ट पार्टनर ढूंढने के लिए लगता है विशाल मेला, बिना मुहूर्त देखे ही हो जाती है शादी और विवाह के लिए नहीं खर्च होता एक भी रुपया…. बिहार राज्य हमेशा से ही अपनी अनोखी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध रहा है।
इस राज्य में शादी और विवाह की कई ऐसी परंपराएं निभाई जाती है, जो भारत तो क्या दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलती। विभिन्न जिलों और गांव में शादियों को लेकर अलग अलग मान्यताएं है। आज हम बिहार में शादी की कुछ अनोखी परंपराओं और संस्कृति के बारे में आपको विस्तार से बता रहे हैं।
Getting Married at Gunpoint in Bihar
सबसे पहले बात करते हैं पकड़ौआ विवाह की, जिसके बारे मे आपने कभी ना कभी न्यूज में जरूर सुना होगा। इसमें लड़के को किडनैप किया जाता है और जबरन मंडप पर बिठाकर शादी करा दी जाती है। लड़के को ये तक नहीं बताया जाता कि उसकी शादी किसके साथ हो रही है। सुहागरात पर ही लड़का पहली बार अपनी पत्नी का चेहरा देख पाता है। पकड़ौआ विवाह को सरकार ने अवैध घोषित कर दिया है, इसके बावजूद हर साल 3 से 4 हजार पकौड़ा विवाह बिहार में देखे जाते है। जो लड़के सरकारी नौकरी वाले होते है, या डॉक्टर, इंजीनियर टीचर होते हैं उन्हें लड़की के घर वाले किडनैप करते हैं।
एक समय ऐसा भी था जब कुंवारे योग्य लड़के घर से बाहर नहीं निकलते थे और किसी सामाजिक या पारिवारिक समारोह में भी शामिल नहीं होते थे। पकौड़ा विवाह कराने की मुख्य वजह दहेज है। असल में जो लड़की के घरवाले दहेज देने में असमर्थ होते हैं और उन्हें एक योग्य दामाद चाहिए होता है, वो इस तरह बंदूक की नोक पर लड़कों को किडनैप पर उनकी शादी कराते है। शादी के कुछ दिन बाद लड़के को उसके घर भेज दिया जाता है।
कई बार इस मामले में एफआईआर भी दर्ज कराई जाती है, लेकिन विवाह होने के बाद पुलिस भी इस मामले में कुछ नहीं कर पाती। ना चाहते हुए भी लड़के और उसके परिवारवालों को लड़की स्वीकार करनी पड़ती है। हालांकि पिछले कुछ समय में पटना हाईकोर्ट ने ऐसी कुछ शादियों को अवैध घोषित किया है।
इसके अलावा बिहार के मिथिलांचल इलाके में विवाह की एक और अनोखी परंपरा है। यहां पर हर साल एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लड़को की बोली लगाई जाती है। लेकिन ये बोली पैसों के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर होती है। लड़किया इस मेले में अपने लिए सुयोग्य वर ढूंढने के लिए आती है।
इस परंपरा की शुरुआत साल 1310 में हुई थी। खास बात ये है कि इस विवाह में दहेज के लिए कोई स्थान नहीं है। ऐसे में गरीब कन्याओं का विवाह भी अच्छे लड़कों के साथ हो जाता है। शादी के दौरान इस बात का भी खास ध्यान रखा जाता है कि लड़का और लड़की का सात पीढ़ी तक कोई ब्लड रिलेशन तो नहीं है।
वहीं बिहार के पूर्णिया जिले में भी एक ऐसे ही मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमे विवाह योग्य लड़के और लड़कियां आते है। लड़कों के हाथ में एक पान होता है। लड़कियां लड़कों से मुलाकात करती है, उनका इंटरव्यू लेती है, सवाल-जवाब कर मन की तसल्ली करती है और अगर ल़डकी को लड़का पसंद आता है तो उनके हाथों से पान लेकर वह खा लेती है।
पान खाने का मतलब है कि रिश्ता पक्का हो गया है। इस मेले को पत्ता मेला भी कहा जाता है। यदि कोई लड़का या लड़की रिश्ता पक्का होने के बाद शादी से इनकार करता है तो उस पर गांव की ओर से जुर्माना लगाया जाता है।
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता अपनी बेटी का विवाह ठीक तरह से नहीं करा पाते हैं। इसको देखते हुए बिहार के छपरा जिले में एक अनोखी पहल की गई है। छपरा में मां भगवती मंदिर में बिना किसी शुल्क के गरीब कन्याओं का विवाह कराया जाता है। साल 2016 से अब तक करीब 2000 शादियां इस मंदिर में कराई जा चुकी है। दूल्हे के परिवारवालों, बारातियों और सभी मेहमानों के लिए भोजन की व्यवस्था भी होती है।
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बेटी की शादी के समय पैसों को लेकर कोई समस्या ना हो, इसको लेकर बिहार के वैशाली जिले में एक अनोखी परंपरा है। यहां जब भी किसी घर में लड़की का जन्म होता है तो जन्म के बाद एक चंदन का पेड़ लगाया जाता है। यहां बेटी के जन्म को शुभ माना जाता है। जब लड़की विवाह योग्य हो जाती है तो चंदन का पेड़ बेचकर जो पैसा आता है, उसे विवाह में लगाया जाता है। चंदन की लड़की की मार्किट में अच्छी डिमांड है और एक पेड़ से शादी का खर्च आसानी से निकल जाता है।
बिहार के सीवान जिला में कुशवाहा समाज में शादी को लेकर एक अलग परंपरा है। आमतौर पर शादी के लिए लोग शुभ मुहूर्त देखते है। लगन और फेरे जैसे सभी काम मुहूर्त के अनुसार ही किए जाते हैं। लेकिन कुशवाहा समाज में किसी लगन या मुहूर्त का इंतजार नही किया जाता। इन लोगों का मानना है कि सभी दिन ईश्वर के है और इसीलिए सभी दिन शुभ है। इंसान का जन्म मरण मुहूर्त देखकर नहीं होता, तो ऐसे में विवाह के लिए मुहूर्त की आवश्यकता क्यों है। इसे कुशवाहा लगन कहा जाता है।
बक्सर जिले में आम के पेड़ की शादी कराई जाती है। इसमें बारात निकालने से लेकर कन्यादान तक, सभी परंपराओं निभाई जाती है। आम के पेड़ से फल तोड़ने से पहले इस परंपरा को निभाया जाता है और इस दौरान गांव के सभी लोग इकट्ठा होकर जश्न मनाते हैं। आजकल बिहार में कुछ नए चलन भी देखने को मिल रहे हैं। बक्सर जिले की एक सादी ने इस साल सभी का ध्यान आकर्षित किया।
इसमे तिलक के दौरान दूल्हे ने कोई महंगे तोहफे जैसे घड़ी, चेन या अंगूठी नहीं ली। बल्कि जीवित पौधे तिलक के दौरान दिए गए। पंडित जी ने सभी को पर्यावरण के महत्व के बारे में समझाया और मेहमानों ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प भी लिया।
जमुई में दूल्हा दुल्हन ने सात फेरे लिए बगैर ही शादी की। उन्होंने अग्नि की बजाय संविधान को साक्षी मानकर शादी की। इस शादी में मंडप या पंडित भी कहीं नजर नहीं आए। शादी में मंत्रोच्चार की बजाय संविधान विशेष विवाह अधिनियम 1954 को पढ़ा गया और एक कॉन्ट्रैक्ट साइन कर वर-वधु का विवाह हुआ। वहीं माधेपुरा में एक रिटायर टीचर ने अपने बेटे की शादी में फिजूल पैसा खर्च करने की बजाय 10 गरीब कन्याओं को शिक्षा के लिए 10-10 हजार रुपए दान किए।
दोस्तों ये सभी परंपराएं बताती है कि बिहार राज्य में समय के साथ किस तरह के परिवर्तन देखने को मिल रहे है और लोग नई और अनूठी पहल कर एक मिसाल पेश कर रहे हैं। वहीं कुछ परंपराओं को समय के साथ बदलने की भी जरूरत है। बिहार की इन अनोखी परंपराओं के बारे में आपके क्या विचार है, हमे कमेंट करके जरूर बताएं।